मुकेश कुंडे: एक जंगल प्रेमी
मेरे साथ ऐसा विरले ही होता है कि किसी व्यक्ति से मिले मात्र एक दिन ही हुआ हो―मिले नहीं, बल्कि उसके बारे में सुने―और उस पर एक लेख लिखने को प्रेरित हो जाऊँ। मुकेश जी के व्यक्तित्व ने मुझ पर एक गहरी छाप छोड़ी। वे कटनी वन्य प्रशासन में वनरक्षक के पद पर कार्यरत थे। अपनी बेबाकी और दिलेरी के लिए मशहूर, मुकेश जी ने वन्य जीवन के विकास और रखरखाव के साथ कभी समझौता नहीं किया। चाहे इसके लिए उन्हें कितने ही बड़े नेता, अधिकारी, या बाहुबली का सामना करना पड़ा हो।

मुकेश जी के वन्य प्रेम और कर्मठता का एक अनुपम उदाहरण जानने को मिला। पिछले वर्ष उनके विभाग ने एक लघु वन तैयार करने की परियोजना बनाई और उसका संचालक उन्हें बनाया। योजना के अनुसार, उन्हें 5000 पौधे लगवाने थे। आमतौर पर सरकारी व्यवस्था के बारे में हमारी यही धारणा है कि कोई भी सरकारी परियोजना न तो समय से ख़त्म होती है, न ही उसके उद्देश्य पूरे होते हैं। इस सोच के विपरीत, मुकेश जी ने न केवल परियोजना समय से पूरी की, बल्कि 5000 की जगह 7000 पौधे लगाए। आज हम उनके लगाए पौधों को देखकर आए। वे अच्छे फल-फूल रहे हैं। आने वाले कुछ सालों में वह वन एक रमणीय स्थान में बदल जाएगा, जहाँ सबको ताज़ी हवा और जैविक विविधता मिलेगी।

ऐसे कर्मठ, वन्यप्रेमी के बारे में जानकर और उसे आपके साथ साझा करके बड़ा आनंदित महसूस कर रहा हूँ। और आशा करता हूँ कि हम भी मुकेश जी से प्रकृति के साथ स्नेहिल संबंध बनाना सीखेंगे।

(इस लेख के लिए जानकारी मुकेश जी के सहकर्मियों श्री सत्येंद्र मिश्रा और श्री शक्तिपाल सिंह से प्राप्त हुई। उनका सहृदय आभार।)